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Radaur- आत्मा शरीर धारण करें या शरीर आत्मा को दोनों का संतुलन समरसता और सह अस्तित्व ही धर्म

शिव महापुराण जय विजय के श्राप की कथा


City Life Haryanaरादौर :  श्री शाकुंभरी देवी मंदिर में आयोजित की जा रही शिव महापुराण कथा में प्रवचन करते हुए कथा वाचक सचिन कौशिक ने कहा कि धर्म का आचरण जरूरी है। इससे जीवन में सुख की प्राप्ति होती है। शास्त्रों में जो धारण करने या धारणा के योग्य है, उसे धर्म कहा गया है। आत्मा शरीर धारण करें या शरीर आत्मा को दोनों का संतुलन समरसता और सह अस्तित्व ही धर्म है। जीवात्मा को अपने आत्म-धर्म या स्व-धर्म में स्थित रहकर जड़ देह व प्रकृति धर्म से तालमेल बनाए रखने में ही सदगति का मार्ग प्रशस्त होता है।

शिव महापुराण जय विजय के श्राप की कथा है। जब जब हम धर्म से विमुख जाते है हमे जीवन मे कठिन परिस्थितियों का सामना करना ही पड़ता है। इसलिए ईश्वर की शरण में रहना आवश्यक है। मानवीय, नैतिक और आध्यात्मिक जीवन मूल्य ही वास्तव में धर्म है। यह मनुष्य को उसके श्रेष्ठ लक्ष्य की तरफ गति प्रदान करता है। लेकिन दोनों एक-दूसरे के बाधक तब होते हैं, जब व्यष्टि या समष्टि अपनी मूलधर्म से हटकर दैहिक और सांप्रदायिक धर्म का अंधानुसरण करने लगते हैं।

जब वे आत्म विवेक तथा मानवता का धर्म छोड़ देते हैं। उन्होंने कहा कि यदि धर्म का निरादर करोगे, तो धर्म ही तुम्हें नष्ट कर देगा। धर्म की रक्षा करने से वह धर्म ही तुम्हारी रक्षा करेगा। इसलिए धर्म को कभी नहीं छोडऩा चाहिए। असल में धर्म, अंत:करण और बाह्य जगत के बीच शांति, सौहार्द्र, सहभागिता, संतुलन व सहअस्तित्व का सूत्र है। इसलिए दया और करुणा को धर्म का मूल माना गया है। सदगुण और आत्मिक स्वधर्म मनुष्यों को ऊंचा उठाते हैं। उन्होंने कहा कि धन के नष्ट होने पर कुछ भी नष्ट नहीं होता, परंतु वृत्त यानी चरित्र के नष्ट होने पर पुरुष पूर्णरूपेण विनष्ट हो जाता है।

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