22 जुलाई से 13 अगस्त तक 200 किसानों का जत्था प्रतिदिन संसद कूच करेगा.
मोदी सरकार द्वारा बनाए गए कृषि कानूनों को रद्द करने और न्यूनतम समर्थन मूल्य को लेकर कानून बनाने की मांग को लेकर पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान संगठन बीते सात महीने से दिल्ली की तीन सीमाओं पर डेरा डाले हुए हैं.
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गुरनाम सिंह चढूनी का स्वागत करते किसान |
गुरनाम सिंह चढूनी ने एक सवाल के जवाब में कहा कि सबकी अपनी अपनी विचारधारा होती है और उसी अनुसार वह कार्य करते है। उनकी विचारधारा किसानों के हकों की लड़ाई लडऩा है और वह कर रहे है। काले कृषि कानून अगर वापिस भी हो जाते है तो उससे किसान मरने से तो बच जाएंगा लेकिन वह वेंटिलेटर पर ही रहेगा। इसलिए अगर किसान को वेंटिलेटर से भी बाहर लाना है तो व्यवस्था परिवर्तन जरूरी है। आज पूरी व्यवस्था कारपोरेट घरानों के हाथों में है। किसान की मेहनत की कमाई कारर्पोरेट घराने की हजम कर रहे है। उन्हें बिना किसी पक्की गारंटी के बैंको से मोटा ऋण मिल जाता है और वह इसे वापिस करने की बजाएं मौज करते है।
जिसका खामियाजा
आम जनता व किसानों की उठाना पड़ता है। लेकिन अगर किसान कर्ज लेने जाएं तो उसे
सैंकड़ों चक्कर लगवाएं जाते है। अगर कर्ज मिल भी जाएं तो कर्ज लौटाने के लिए उस पर
इतना दबाव बनाया जाता है कि वह आत्महत्या करने के लिए विवश हो जाता है। जबकि किसान
अपना कर्ज लौटाना चाहता है लेकिन सरकार की गलत नीतियों के कारण उसे उसकी फसलों का
उचित दाम नहीं मिल रहा है। जिससे किसान कर्जदार हो रहा है।
मौके पर हरपाल सुढल, मंदीप
रोड़छप्पर, संदीप टोपरा, संदीप सढूरा, सीटू नंबरदार, जोगिंद्र सिंह, रूपेंद्र कौर इत्यादि उपस्थित थे।