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Sirsa - प्रगतिशील किसान आस पास के किसानों को भी बेबी कॉर्न की बिजाई करने के लिए कर रहा है जागरूक

-परंपरागत खेती को त्याग कर आधुनिक खेती में जुटे किसान

-सिरसा के किसान विनोद मेहता ने 18 एकड़ में बेबी कॉर्न की बिजाई की

-विनोद मेहता ने अगले वर्ष 100 एकड़ में बेबी कॉर्न की बिजाई करने का टारगेट किया

-देश के बड़े महानगरों में फाइव स्टार होटल में सप्लाई होता है बेबी कॉर्न

-गेहूं, धान, नरमे की फसल से कई गुणा ज्यादा मुनाफा देता है बेबी कॉर्न

-कम पानी से बेबी कॉर्न की फसल की बिजाई होती है

-दिल्ली, मुंबई जैसे बड़े शहरों में बेबी कॉर्न की होती है डिमांड


City Life Haryanaसिरसा :  परंपरागत खेती से हटकर हरियाणा के किसानों ने अनुबंध खेती और ओपन मंडी का लाभ लेते हुए न केवल खेती में नए प्रयोग किए हैं, बल्कि मुनाफा भी अधिक कमाया है। इसी तरह के प्रयोगधर्मी किसान हैं सिरसा जिला के गांव कुक्कड़थाना के किसान विनोद मेहता। विनोद मेहता इन दिनों धान , गेहूं की खेती की बजाए  बेबी कॉर्न की खेती कर रहे है। बेबी कॉन की काश्त के जरिए आज धान, कॉटन, गेहूं की फसलों के मुकाबले कई गुणा मुनाफा कमा रहे हैं।

खास बात यह है कि इस साल उन्होंने 18 एकड़ में बेबी कॉन फसल बोई और करीब 100 क्विंटल फसल का उत्पादन हुआ। दिल्ली में प्राइवेट ट्रेडर्स को 12,800 रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से फसल बेची। वे पूरी तरह से जैविक खेती करते हैं। पूरा परिवार तो खेतीबाड़ी करता ही है, उनकी ओर से की जा रही बहुद्देश्यीय खेती के कारण सैकड़ों लोगों को रोजगार भी मिला हुआ है। दरअसल हरियाणा में गेहूं, धान, नरमा, सरसों, बाजरा फसलों के मोहपाश में किसान बंधे हुए हैं। हालांकि हरियाणा के उद्यान विभाग की ओर से किन्नू, अमरुद, अंगूर के अलावा फूलों, मशरूम, मसालों व सब्जियों की खेती के लिए 20 से 30 फीसदी अनुदान दिया जाता है। विभाग की ओर से कोल्ड स्टोरेज के अलावा सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली पर भी अनुदान दिया जाता है। बावजूद किसान जैविक खेती नहीं अपना रहे हैं। इन सबके बीच कुछ किसान आज फसल विविधिकरण अपनाकर ओपन मार्कीट में अपनी फसल बेचकर मुनाफा कमा रहे हैं।

फसलीकरण में प्रयोग का नतीजा है कि आज किसान विनोद मेहता का सिरसा और बड़े शहरों में अच्छा रुतबा है। बेबी कॉर्न की फसल की बिजाई उनकी समृद्धि की गवाही देती हैं। दूसरे किसान भी इस तरह के प्रयोग कर और सरकारी योजनाओं का लाभ उठाकर खेती को नई सोच के साथ घाटे की बजाय मुनाफे की पटरी पर ला सकते हैं।


गांव कुककड़थाना के किसान विनोद मेहता पिछले कई सालों से बेबी कॉर्न की खेती कर रहे है। बेबी कॉर्न की खेती दूसरी फसलों की खेती के मुकाबले में फायदेमंद होने के कारण अब विनोद मेहता ने 18 एकड़ भूमि में बेबी कॉर्न की खेती की है। विनोद मेहता अब इससे भी आगे बढ़कर अगले साल तक 100 एकड़ भूमि में खेती करने का मन बना चुके है। विनोद मेहता ने बताया कि बेबी कॉन प्रोटीन युक्त होता है। थ्री स्टार व फाइव स्टार होटल-रेस्तरां में इसकी डिमांड है। इसकी कीमत करीब 128 रुपए किलो है। एक एकड़ में 12 क्विंटल फसल होती है। साल में कोई भी किसान धान, नरमे, कपास या भी किसी और फसल की खेती सिर्फ 2 बार ही कर सकता है लेकिन बेबी कॉर्न की खेती साल में 3 बार कर सकता है और चौथी बार किसी भी सब्जी की खेती कर सकता है।

उन्होंने कहा कि बेबी कॉर्न की खेती दूसरी फसलों की खेती के मुकाबले में अधिक फायदेमंद है। एक एकड़ में 40 हजार रुपए का फायदा होता है और साल के अंत तक बेबी कॉर्न की खेती करने से करीब डेढ़ लाख का किसान को मुनाफा होता है। उनके अनुसार अभी बेबी कॉन की हार्वेस्टिंग का सारा काम मैन्यूल है। ऐसे में इससे उनके खेत में अनेक लोगों को रोजगार भी मिलता है और उन्हें गेहूं व धान की फसल से अधिक मुनाफा मिलता है। विशेष बात यह है कि बेबी कॉन की फसल सवा से अढ़ाई माह में तैयार हो जाती है। ऐसे में किसान साल में तीन बार इसे बो सकता है। विनोद मेहता की खेतीबाड़ी में छोटे किसान भी भरपूर सहयोग कर रहे है। वे किसान बेबी कॉर्न की खेती की प्रक्रिया को समझने के बाद खुद उन किसानों ने भी अपने खेतों में बेबी कॉर्न की खेती की है। प्रगतिशील किसान विनोद मेहता इन दिनों पूरी तरह से जैविक व सामुदायिक खेती की एक मिसाल बने हुए हैं।


वही, विनोद मेहता की खेती से प्रेरणा पाकर महेंद्र सिंह ने बताया कि विनोद मेहता को बेबी कॉर्न की खेती करते देख वे भी उत्साहित हुए है और उन्होंने भी अपने खेत में बेबी कॉर्न की फसल की खेती की है। उन्होंने कहा कि बेबी कॉर्न की खेती दूसरी फसलों की खेती के मुकाबले में अधिक फायदेमंद है।

जिला उद्यान विभाग के अधिकारी डॉ रघुबीर सिंह झोरड़ ने बताया कि बेबी कॉर्न की फसल की खेती दूसरी फसलों की खेती करने के मुकाबले में फायदेमंद है। इस फसल की बिजाई में पानी कम लगता है और पानी की बचत होती है। उन्होंने कहा कि बेबी कॉर्न की फसल की खेती साल में 3 बार हो सकती है जबकि दूसरी फसलों की खेती केवल 2 बार ही होती है।

-यह है प्रदेश में खेती का गणित


हरियाणा में करीब 36 लाख हैक्टेयर कृषि योग्य भूमि है। रबी सीजन में यहां पर करीब साढ़े 25 लाख हैक्टेयर में गेहूं, साढ़े 6 लाख हैक्टेयर में सरसों के अलावा कुछ रकबे पर चने व जौं की खेती की जाती है। खरीफ सीजन में करीब साढ़े 12 लाख हैक्टेयर में धान, 7 लाख हैक्टेयर में कॉटन, साढ़े 5 लाख हैक्टेयर में बाजारा व 70 हजार हैक्टेयर में ज्वार की खेती की जाती है। करीब 64 हजार हैक्टेयर में बागवानी व 4 लाख हैक्टेयर में सब्जियों की काश्त की जाती है।

 

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