स्थिर परमात्मा संग सहज जीवन - सत्गुरु माता सुदीक्षा जी महाराज
सत्गुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ने अपने पावन प्रवचनों में फरमाया कि सत्संग में महापुरुषों के प्रवचनों का श्रवण करने मात्र से ही सकारात्मक विचारों का उद्गार हो जाता है। तब तन एवं मन से अच्छे कर्म ही किए जाते है। जिस प्रकार अनाज, भोजन रूपी खुराक है ठीक उसी प्रकार प्रवचन भी भक्त के लिए नैतिक मूल्यों की खुराक है। समाज में रहते हुए हमें दूषित भावों से दूर रहकर केवल सद्गुणों को ही ग्रहण करना चाहिए जैसे घोड़े की आंखों के दोनों किनारों पर पट्टी बंधी होती है जिसके कारण वह केवल अपने लक्ष्य की ओर ही देखता है उसका ध्यान कहीं और नहीं भटकता। ठीक उसी प्रकार भक्त के जीवन का लक्ष्य भी मोक्ष को प्राप्त करना है इसलिए जीते जी ब्रह्मज्ञान द्वारा इस परमात्मा की पहचान करके अपने लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है।
सत्गुरू माता जी ने उदाहरण सहित समझाया कि एक व्यक्ति अपनी मंजिल की ओर बढ़ रहा होता है किन्तु मार्ग में मेला देखकर उसकी चकाचौंध में ही वह खो जाता है। किन्तु हमें ऐसा नहीं करना है। हमें तो एकाग्रचित्त होकर सांसारिक मोह माया के बंधनों से स्वयं को बचाते हुए, प्रतिपल प्रभु भक्ति में लीन रहकर अपने जीवन को आनंदित बनाना है।
मनुष्य जन्म की महत्ता का जिक्र करते हुए सत्गुरू माता जी ने फरमाया कि मनुष्य योनि सबसे उत्तम है। अतः इसे केवल भोग, निद्रा के लिए उपयोग नहीं करना अपितु इसका सदुपयोग शाशवत, स्थिर परमात्मा से जुड़ने के लिए करना है। अपना अमूल्य जीवन इसकी स्तुति में लीन होकर व्यतीत करना है न कि किसी प्रकार के सांसारिक मेले में उलझकर व्यर्थ में गवांना है। जब ऐसी भावना से संतों का जीवन युक्त हो जाता है तब उसके हृदय में केवल प्रेम का ही भाव बना रहता है। फिर वह निरंकार की बनाई हर रचना से प्रेम करता है। हर व्यक्ति में इसी के अंश को देखते हुए अपने जीवन को प्रतिपल आनंदित करता है। जोनल इंचार्ज सुरेंद्र पाल सिंह व संयोजक महात्मा बलदेव सिंह ने सत्गुरु माता जी के प्रति हृदय से आभार प्रकट किया और साथ ही प्रशासन एवं स्थानीय सज्जनों के सहयोग के लिए धन्यवाद भी किया।