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रादौर - जगह जगह हर्षोल्लास के साथ मनाई गई शहीद उधमसिंह की जयंती

महान क्रांतिकारी शहीद उधम सिंह का जन्म 26 दिसंबर 1899  को पंजाब के संगरूर जिले के सुनाम गांव के एक परिवार में हुआ 


City Life Haryana
  रादौर : शहीद उधमसिंह की जयंती क्षेत्र में हर्षोल्लास के साथ मनाई गई। इस अवसर पर शहीद  कांबोज धर्मशाला रादौर व इंकलाब मंदिर गुमथला राव में कार्यक्रम आयोजित किए गए। कार्यक्रम का शुभारंभ हवन यज्ञ के साथ किया गया।

जिसके बाद शहीद उधमसिंह के चित्र पर पुष्प अर्पित कर नमन किया गया। कांबोज धर्मशाला रादौर में आयोजित किए गए कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रधान राजेन्द्र कांबोज व मानसिंह आर्य ने की। जबकि गुमथला में शहीद प्रेमियो ने अधिवक्ता वरयामसिंह के नेतृत्व में शहीद उधमसिंह कांबोज के चित्र पर पुष्प अर्पण किए। इस अवसर पर प्रधान राजेन्द्र कांबोज व मानसिंह आर्य ने कहा कि शहीदो की कोई कौम नहीं होती लेकिन जो कौम अपने शहीदो को भूल जाती है वह कभी भी आगे नहीं बढ़ सकती।

शहीद उधमसिंह का नाम पूरे देश में शहीदो की श्रेणी में पूरे सम्मान के साथ लिया जाता है। क्योंकि उन्होंने अपने देशवासियों के खून का बदला लेने के लिए लंबा इंतजार किया और इंतकाम लेकर अपना देशधर्म निभाया। मौके पर जयप्रकाश कांजनू, रणबीर मंधार, कमल चमरोड़ी, शिवकुमार संधाला, हेमराज कुंजल, सचिन कांजनू, सुलेख चंद, नरेश कुमार, धर्मचंद बुबका, सुरेश कुमार, धर्मचंद इत्यादि मौजूद थे।

वहीं इंकलाब मंदिर गुमथला में आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए अधिवक्ता वरयामसिंह ने कहा कि इन्कलाब मन्दिर में आज महान क्रांतिकारी शहीद उधम सिंह का 122वां जन्म दिवस मनाया गया। महान क्रांतिकारी शहीद उधम सिंह का जन्म 26 दिसंबर 1899  को पंजाब के संगरूर जिले के सुनाम गांव के एक परिवार में हुआ था। सन 1901 में उनकी माता और 1907 में उनके पिता का निधन हो गया। इस घटना के चलते उन्हें अपने बड़े भाई के साथ अमृतसर के एक अनाथालय में शरण लेनी पड़ी। 

उनका बचपन का नाम शेर सिंह और उनके भाई का नाम मुक्ता सिंह था। क्रांतिकारी उधम सिंह 13 अप्रैल 1919 को पंजाब में घटित हुए जालियांवाला बाग नरसंहार के प्रत्यक्षदर्शी थे। कई वजहों से जलियांवाला बाग में मारे गए लोगों की सही संख्या कभी भी सामने नहीं आई। इस घटना से क्रांतिकारी उधमसिंह तिलमिला गए और उन्होंने जलियांवाला बाग की मिट्टी हाथ में लेकर सबक सिखाने की प्रतिज्ञा ली थी कि डायर को उसके किए अपराधों की सजा दिलाकर रहेंगे। 1940 में उन्हें यह मौका मिला। 4 जून 1940 को उधम सिंह को हत्या का दोषी ठहराया गया और 31 जुलाई 1940 को उन्हें पेंटनविले जेल में फांसी दे दी गई। मौके पर सर्वजीत सिंह, कुलवंत सिंह संधू, गुरूमुख सिंह, शेर सिंह मलिक, पंकज कुमार, सोनू राम, दीपक गर्ग, अमित कुमार, विजय कुमार, अवतार सिंह इत्यादि मौजूद थे।

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