उद्योगपतियों के फायदे के लिए किसान की बलि चाहती है सरकार
सुढैल के किसानो
ने आंदोलन में राशन व धनराशि का सहयोग किया। गांव के जत्थे के साथ आंदोलन में
शामिल होने के लिए जाते समय गाँव के किसान
अर्जुन सुढैल ने कहाकि किसान बिल बनाने से पहले ही पूरे देश मे राज्य सरकारों की
अनुमति से अडानी के बड़े बड़े गोदाम बन गए। इससे इस तथ्य की प्रमाणिकता को बल मिलता
है कि कृषि बिलों की योजना काफी समय से थी और उद्योगिक घरानों को सारी योजना का
ज्ञान था। इस बिल के बाद किसानों की सारी फसल बड़े बड़े पूंजीपति व उद्योगपति खरीदेंगे।
उन्होंने कहा कि
सरकार ने आवश्यक वस्तु अधिनियम में बदलाव करके गेहूं, चावल, प्याज,आलू, दालें, तेल,तिल आदि आवश्यक वस्तुओं से भंडारण सीमा भी
समाप्त कर दी है ताकि उद्योगपति कानूनन इन वस्तुओं का भंडारण करके इन वस्तुओं की
बाजार में झूठी व नकली किल्लत दिखा कर मनमाने दामों पर उपभोगता को बेच सकें। इन
काले कृषि कानूनों से किसान के साथ साथ देश का प्रत्येक व्यक्ति व उत्पाद का
उपभोगता भी प्रभावित होगा और नुकसान खाएगा।
एक देश एक बाज़ार
के नाम पर अम्बानी अडानी जैसे उद्योगपति देश के किसी भी छेत्र में भंडारण करके
कृषि उत्पाद बेच सकेंगें ओर कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के कानून अनुसार बिना भूमि खरीदे
ही गरीब किसानों की भूमि का ठेका लेकर भूमि मालिक की तरह खेतीबाड़ी करवा सकेंगे।
स्पष्ट हैं कि तीनों कृषि अध्यादेश सिर्फ और सिर्फ बड़े उद्योगपतियों के फायदे औऱ
किसान व आमजन के नुकसान के लिए है।
सरकार किसान
आंदोलन को बदनाम करके कुचलने की नाकाम कोशिश कर सकती है जिससे देश मे असंतोष फैल
सकता है इसलिए किसानों की मांग अनुसार सरकार को तीनो कृषि अधिनियमो को रद्द करके
किसान आंदोलन को समाप्त करके किसान व आमजन को राहत पहुंचानी चाहिए ताकि
अर्थव्यवस्था पटरी पर लौट सके ओर जल्द से जल्द तीनो काले क़ानून वापिस हो।