Madanlal Dhingra had gone to England to study, but he became such a color of patriotism that he shot and killed the British officer William Hutt Curzon Wyllie.
इस अवसर पर अशोक गुंबर ने कहा कि
स्वतंत्रता संग्राम की चिंगारी को अग्रि में बदलने का श्रेय मदनलाल ढींगरा को जाता
है। उन्होंने राष्ट्रभक्ति की प्रेरणा देने का अभूतपूर्व कार्य किया। जिस कारण ही
वह देश के इतिहास में अमर हुएं है। मदनलाल ढींगरा को जब फांसी की सजा दी गई दी तो
उन्होंने अदालत में खुले शब्दों में कहा था कि मुझे गर्व है कि मैं अपने देश के
लिए अपने प्राण बलिदान कर रहा हूं। उनके यह विश्वास से भरे शब्द देश के लोगों के
लिए हमेंशा प्रेरणा बने रहेगें। फांसी के समय वह श्रीमद भागवत गीता को हाथ में
लिएं हुएं थे। उन्होनें कहा कि आजादी शहीदों की देन है हमें इस बात को कभी भूलना
नहीं चाहिएं और शहीदों के सम्मान के लिए हमेंशा तत्पर रहना चाहिएं।
Madanlal
Dhingra’s place in the history of Indian freedom struggle is unequaled. For
Madanlal Dhingra, born in a prosperous family and pursuing higher education in
London, the country’s independence was paramount. Turned the spark of Indian
independence into fire. In his short life of only 25 years, he roused such a
light of patriotism that his name was engraved in the golden letters in
history. Madanlal Dhingra had gone to England to study, but he became such a
color of patriotism that he shot and killed the British officer William Hutt
Curzon Wyllie. He was tried for the murder of Curzon Wyllie. On 23 July 1909,
the Dhingra case was heard in the Old Bailey Court. The court ordered the death
penalty and on 17 August 1909, his life was ended by hanging in London’s
Pentville Jail. Madanlal became immortal even after his death. Madan Lal
Dhingra openly said in the court that “I am proud that I am dedicating my
life.”
भारतीय स्वतंत्रता
संग्राम के इतिहास में मदनलाल ढींगरा का स्थान अप्रतिम है। एक संपन्न परिवार को जन्म लेने और लंदन में उच्च शिक्षा ग्रहण कर रहे मदनलाल
ढींगरा के लिए देश की आजादी सर्वोपरि थी। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की चिनगारी को अग्नि में बदल दिया। मात्र 25 वर्ष के अपने अल्प जीवन में उन्होंने
देशप्रेम की ऐसी अलख जगायी कि इतिहास में उनका नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित हो गया। मदनलाल ढींगरा इंग्लैण्ड में अध्ययन करने गये थे लेकिन देश भक्ति के रंग में
ऐसे रंग गए कि उन्होनें अंग्रेज अधिकारी विलियम हट कर्जन वायली की गोली मारकर
हत्या कर दी। कर्जन वायली की हत्या के आरोप में उन पर
मुकदमा चलाया गया। 23 जुलाई 1909 को ढींगरा मामले की सुनवाई पुराने बेली
कोर्ट में हुई। अदालत ने उन्हें मृत्युदण्ड का आदेश दिया
और 17 अगस्त सन 1909 को लन्दन की पेंटविले जेल में फाँसी पर
लटका कर उनकी जीवन लीला समाप्त कर दी गयी। मदनलाल मर कर भी अमर हो गये। मदन लाल ढींगरा ने अदालत में
खुले शब्दों में कहा कि "मुझे गर्व है कि मैं अपना जीवन समर्पित कर रहा हूं।"
इस अवसर पर शशि दुरेजा, मुकेश मक्की, सुशील बत्तरा, मंगतराम बठला, अभिषेक आहुजा, सतविंद्र
रिंकू, हरीश धवन, दीपक उपनेजा, ओमप्रकाश सहगल, पूर्णचंद
नारंग, प्रीतपाल, गुलशन मेहता, गुलशन गुबंर, घनश्याम
मनचंदा इत्यादि उपस्थित थे।