श्वेता कांबोज बनेगी IAS
रादौर 𝐍𝐄𝐖𝐒। अगर मन में कुछ कर गुजरने की चाह हो तो कुछ भी असभंव नहीं है। ऐसा ही कर दिखाया है ग्रामीण अचंल से निकली 𝟐𝟐 वर्षीय श्वेता कांबोज ने। श्वेता ने संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) की परीक्षा में 𝟓𝟒𝟒वां रैंक हासिल किया है। खास बात यह है कि श्वेता ने यह सफलता अपने पहले प्रयास में ही हासिल की। श्वेता मूलरूप से इंद्री के गांव पतहेड़ा की निवासी है लेकिन इन्होंने 𝟏𝟐वीं तक की शिक्षा रादौर से पूरी की। श्वेता के पिता सुमेर कांबोज इंद्री अनाज मंडी में आढ़ती है और मां मुकेश रानी हाऊसवाईफ है। लेकिन उन्होंने शिक्षा में मास्टर डिग्री की है। भाई आदित्य कांबोज चंडीगढ़ से बी.टेक कर रहे है।
- शुरू से ही टॉपर रही श्वेता
श्वेता कांबोज शिक्षा के क्षेत्र में शुरूआत से ही आगे रही है। 𝟓वीं तक की शिक्षा उसने लाड़वा के संजय गांधी पब्लिक स्कूल से की। जिसके बाद रादौर के डीएवी पब्लिक स्कूल में दाखिला लिया और 𝟏𝟐वीं तक की शिक्षा यहां से की। स्नातक शिक्षा श्वेता ने एमएलएन कॉलेज यमुनानगर से पूर्ण की। 𝟏𝟎वीं में श्वेता ने जिले में टॉप किया था तो 𝟏𝟐वीं में वह ब्लॉक की टॉपर रही। ग्रेजुएशन में श्वेता ने कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय में सिल्वर मेडल हॉसिल करने में कामयाबी पाई।- पिता को ब्रेन हेम्रेज होने पर टूटने लगी थी हिम्मत
लेकिन दोस्तों ने नहीं मानने दी हार
श्वेता बताती है कि उसके पिता का सपना शुरू से ही उसे आईएएस बनाना था। इसलिएं उन्होंने हर कदम पर उसका साथ दिया। वह उन्हें ही अपना आदर्श मानती है। लेकिन एक समय ऐसा आया जब उसे लगने लगा कि वह अब अपने पिता का सपना पूरा नहीं कर पाएंगी। 𝟐𝟎𝟏𝟕 में पिता सुमेर कांबोज को ब्रेन हेम्रेज हो गया। पिता की हालत काफी नाजुक थी। वह अस्पताल में पिता के साथ ही रहती थी। तब उसका हौंसला टूटने लगा और उसने भी अपनी शिक्षा बीच में ही छोडऩे का मन बना लिया। लेकिन इस कठिन समय में उसके दोस्तो से उसका साथ दिया। दोस्त नमिता, सचिन, शुभम व मामा के लड़के कुलदीप ने उसे हिम्मत नहीं हारने दी और कहा कि तुझे हर हालत में अपना व अपने पिता का सपना पूरा करना होगा। उनके दिएं हौंसले से ही यह सफर एक बार फिर से शुरू हुआ।
- सोशल मीडिया से रखी दूरी, मोबाइल व इंटरनेट का
प्रयोग केवल पढ़ाई तक सीमित रखा
श्वेता ने यूपीएससी की परीक्षा को पास करने का जो लक्ष्य निर्धारित किया था उस लक्ष्य को पूरा करने के लिए उसने कभी अपने पांव डगमगाने नहीं दिएं। 𝟏𝟎 से 𝟏𝟐 घंटे की प्रतिदिन पढ़ाई का लक्ष्य उसने निर्धारित रखा। लेकिन सोशल मीडिया से खुद को हमेशा दूर ही रखा। केवल कुछ खास अवसरों पर वह इसका इस्तेमाल करती थी और उसके बाद दृढ़ इच्छा शक्ति से वह फिर से उससे दूरी बना लेती थी। परीक्षा पास करने में इंटरनेट का सहारा बखूबी लिया। गुगल व यूटयूब की मदद भी वह निरतंर लेती रही। खास बात यह है कि परीक्षा की कोङ्क्षचग भी कोविड़ के चलते ऑनलाईन माध्यम से ही हुई। इससे एक लाभ यह भी हुआ उसे परिवार से दूर भी नहीं जाना पड़ा और अपनों के बीच रहकर ही कोंचिग ली।
- अभी रैंक बढ़ाने का रहेगा प्रयास, महिला सशक्तिकरण में देना चाहती है योगदान
श्वेता को पहले प्रयास में यह सफलता मिली है। लेकिन
वह इसी तक सीमित नहीं रहना चाहती। रैंक को बढ़ाने के लिए एक बार फिर से प्रयास
करेगी और पिता के आईएएस सपने को पूरा का प्रयास करेगी। वह सामाजिक क्षेत्र में
कार्य करने की इच्छुक है। इसलिएं उसने आईपीएस व विदेश क्षेत्र को नहीं चुना। महिला
सशक्तिकरण के क्षेत्र में कार्य करने का उनका मन है। वह लड़कियों को प्ररेणा
देने के साथ साथ उन्हें आगे बढ़ाने के लिए भी कार्य करना चाहती है। उनका मानना है
कि लड़कियों को अपने सपनों की उडान को भरने से हिचकिचाना नहीं चाहिएं। अगर माता
पिता सहयोग नहीं कर रहे तो उन्हें माता पिता से बात कर अपने लक्ष्य के बारे बताना
चाहिएं। उन्हें विश्वास है कि अगर लड़कियां प्रयास करे तो माता पिता भी उनकी हर
संभव मदद करने से पीछे नहीं हटेगें।