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New Delhi : पिछले 7 सालों में पूरा देश हमारे ‘अन्नदाता’ किसान और खेत मजदूर की रोजी-रोटी पर बर्बर हमले का साक्षी बना : सुरजेवाला

Congress Working Committee Briefing by Randeep S Surjewala at AICC HQ


AICC मुख्यालय में रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कांग्रेस कार्य समिति की ब्रीफिंग करते हुए कई मुद्दे रखे 


1. इस सबकी शुरुआत सन 2015 में हुई जब केंद्र की भाजपा सरकार ने कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार द्वारा किसानों की सुरक्षा के लिए बनाए गए भूमि अधिग्रहण मुआवजा कानून को संसद में एक अधिनियम बनाकर खारिज कर दिया। इसके बाद कृषि कर्ज से किसी भी तरह की राहत देने से इंकार करने, फसल का मुआवज़ा देने के लिए बनाए गए नियमों को कमजोर करने, और एक अत्यधिक जटिल फसल बीमा योजना बनाने का कुत्सित चक्र शुरू हुआ, जिससे पीड़ित किसानों की बजाय चुनिंदा बीमा कंपनियों ने भारी मुनाफा कमाया।

मोदी सरकार के घ्रणित मनसूबों का अंत यहां भी नहीं हुआ। इसके बाद केंद्र की भाजपा सरकार ने इतिहास में पहली बार खेती पर टैक्स लगाते हुए खाद (5 प्रतिशत), कीटनाशकों (18 प्रतिशत) और ट्रैक्टर एवं कृषि उपकरण (12 से 18 प्रतिशत) पर अप्रत्याशित जीएसटी लगा दिया। परिणाम यह हुआ कि खाद, बीज और कीटनाशकों के दाम आसमान छूने लगे। स्थिति और भी ज्यादा गंभीर तब हो गई, जब डीज़ल की कीमतें अनियंत्रित होकर 100 रुपये प्रति लीटर तक पहुंच गईं और देश के अनेक शहरों में तो डीज़ल 100 रु. प्रति लीटर के पार हो गया। इतना सब होने के बाद भी मुख्य फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य यानि एमएसपी में हर साल केवल 2 से 4 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी ही की गई।
मोदी सरकार द्वारा अत्यधिक टैक्स लगाने व किसानों को पीछे धकेलने वाले इन किसान विरोधी उपायों से खेती पर 20,000 रु. से 25,000 रु. प्रति हेक्टेयर का अतिरिक्त भार पड़ा।

भारत के किसानों की स्थिति का अनुमान एनएसएसओ की रिपोर्ट से लगाया जा सकता है, जिसमें साफ कहा गया है कि छोटे व सीमांत किसान की औसत दैनिक आय केवल 26.67 रु. प्रति दिन है और हर किसान पर औसत 72,000रु. का कर्ज है। यानि, किसान की प्रति दिन की औसत आय एक मजदूर के न्यूनतम दैनिक मुआवजे से भी कम है।

खेती के तीन ‘काले कानून’ मोदी सरकार द्वारा मुट्ठीभर पूंजीपति मित्रों को मुनाफा कमवाने के लिए भारत के अन्नदाता किसानों का दमन करने की एक कुत्सित साजिश की पराकाष्ठा है। साढ़े दस महीनों से, लाखों किसान दिल्ली की सीमाओं पर शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। उन्हें राष्ट्रीय राजमार्ग पर कीलें और बोल्डर लगाकर आगे बढ़ने से रोक दिया गया है। अपने हक की इस लड़ाई में लगभग एक हजार किसान अपनी जान गंवा चुके हैं, लेकिन मोदी सरकार उनकी बात तक सुनने को तैयार नहीं। मोदी सरकार ने तीन काले कानूनों को वापस लेकर इस गतिरोध को समाप्त करने से साफ इंकार कर दिया है।


2. लखीमपुर खेरी में किसानों को कुचलकर मारने की घटना सरकार की हठधर्मिता प्रदर्शित करती है। यह घटना गृह मामलों के लिए केंद्रीय मंत्री (राज्य), जो खुद एक हत्या के मामले के आरोपी हैं और उनके खिलाफ हाई कोर्ट ने तेंतालीस महीनों से अपना फैसला सुरक्षित रखा हुआ है, उनके द्वारा किसानों को गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी सार्वजनिक रूप से दिए जाने के बाद घटित हुई। इस धमकी से उनका संदिग्ध अतीत स्पष्ट होता है।

क्या इस तरह के गैरकानूनी और क्रूर कृत्यों को नजरंदाज किया जा सकता है, खासकर तब, जब 26 सितंबर, 2021 को मंत्री द्वारा चेतावनी दिए जाने के बाद 3 अक्टूबर, 2021 को मंत्री एवं उनके परिवार के सदस्यों की दो गाड़ियों से किसानों को सबके सामने खुलेआम कुचलकर मार दिया जाता है। अब, जब कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व में जनता द्वारा दबाव डाले जाने पर गृह मामलों के लिए केंद्रीय राज्य मंत्री के बेटे को आरोपी मानकर गिरफ्तार कर लिया गया है, तब भी प्रधानमंत्री जी ने बेशर्मी की हर सीमा को पार कर उन्हें अपने पद से बर्खास्त करने से इंकार कर दिया है। कांग्रेस कार्यसमिति श्री राहुल गांधी द्वारा साहस व निरंतरता से किसानों के मुद्दों के लिए लड़ने और श्रीमती प्रियंका गांधी वाड्रा द्वारा दृढ़ता से उत्तर प्रदेश में किसानों की हत्या के खिलाफ लड़ाई की सराहना करती है।

उपरोक्त तथ्यों के मद्देनजर, एक सरल सा सवाल यह है कि क्या इस मामले में कभी न्याय हो पाएगा?

3. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ‘तीन काले कानूनों’ को खारिज करने और भारतीय किसानों के लिए उचित व निष्पक्ष न्यूनतम समर्थन मूल्य सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस देश के किसानों के साथ खड़ी रही है और भूमि के अधिग्रहण के लिए मुआवजा पाने का अधिकार खारिज करने की साजिश के खिलाफ आंदोलनों का नेतृत्व करती रही है। हम पहले भी सफल हुए हैं और तीन ‘काले कानूनों’ के खिलाफ भी सफल होंगे।

हम भारत के किसानों और खेत मजदूरों पर मोदी सरकार द्वारा दुर्भावना से किए जा रहे हमलों के खिलाफ किसानों की लड़ाई में उनके साथ खड़े रहने का अपना संकल्प दोहराते हैं।

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