जल परमात्मा का वरदान है, हमें इस अमृत की करनी संभाल है
जगाधरी DIGITAL DESK ||| संत निरंकारी मिशन की सामाजिक शाखा संत निरंकारी चैरिटेबल फाउंडेशन के तत्वाधान में ‘अमृत प्रोजेक्ट’ के अंतर्गत ‘स्वच्छ जल, स्वच्छ मन’ परियोजना के दूसरे चरण का शुभारंभ किया गया। प्रोजेक्ट के अंतर्गत रविवार को संत निरंकारी मिशन ब्रांच बूड़िया व दड़वा की निरंकारी सेवादल व साध संगत ने पश्चिमी यमुना नहर के बूड़िया पुल, यमुना नहर के श्रीराम मंदिर घाट, छठ घाट, गांव मेहर माजरा के जोहड़, संत निरंकारी सत्संग भवन शहजादपुर व अन्य स्थानों की सफाई की। निरंकारी अनुयायियों ने पश्चिमी यमुना नहर किनारे व बूड़िया पुल पर जमा गंदगी व पॉलिथीन को झाड़ू, कस्सी, तसलों के माध्यम से सफाई की। मिशन के संयोजक महात्मा बलदेव सिंह ने सफाई अभियान का जायजा लिया। निरंकारी मिशन द्वारा चलाए गए इस विशेष सफाई अभियान की मार्ग से निकलने वाले हर वाहन चालक, राहगीर व ग्रामीणों ने प्रशंसा की।
ब्रांच बूड़िया के मुखी महात्मा अश्वनी कुमार व संचालक बालकिशन ने बताया कि निरंकारी बाबा हरदेव सिंह जी महाराज की शिक्षाओं से प्रेरित इस परियोजना के तहत भारत के 27 राज्यों एवं केन्द्रशासित प्रदेशों के 1533 से अधिक स्थानों पर अभियान चलाकर सफाई की गई। सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज व राजपिता रमित जी के आशीर्वाद से यहां 11 लाख से भी अधिक स्वयंसेवकों के सहयोग से नदियों, नहरों, जलाशयों, तालाब व जोहड़ाें की सफाई कर उन्हें स्वच्छ रखने का संदेश दिए। परियोजना के दूसरे चरण के शुभारंभ पर निरंकारी राजपिता रमित जी ने कहा कि बाबा हरदेव सिंह जी ने अपने जीवन से हमें यही प्रेरणा दी कि सेवा की भावना निष्काम रूप में होनी चाहिए, न कि किसी प्रशंसा की चाह में। हमें सेवा करते हुए उसके प्रदर्शन का शोर करने की बजाय उसकी मूल भावना पर केंद्रित रहना चाहिए। हमारा प्रयास स्वयं को बदलने का होना चाहिए क्योंकि हमारे आंतरिक बदलाव से ही समाज एवं दुनिया में परिवर्तन आ सकता है। एक स्वच्छ और निर्मल मन से ही सात्विक परिवर्तन का आरंभ होता है।
सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ने आर्शीवचनों में फरमाया कि हमारे जीवन में जल का बहुत महत्व है और यह अमृत समान है। जल हमारे जीवन का मूल आधार है। परमात्मा ने हमें यह जो स्वच्छ एवं सुंदर सृष्टि दी है, इसकी देखभाल करना हमारा कर्तव्य है। मानव रूप में हमने ही इस अमूल्य धरोहर का दुरुपयोग करते हुए इसे प्रदूषित किया है। हमें प्रकृति को उसके मूल स्वरूप में रखते हुए उसकी स्वच्छता करनी होगी। हमें अपने कर्मो से सभी को प्रेरित करना है न कि केवल शब्दों से। कण -कण में व्याप्त परमात्मा से जब हमारा नाता जुड़ता है और जब हम इसका आधार लेते है तब हम इसकी रचना के हर स्वरूप से प्रेम करने लगते है। हमारा प्रयास होना चाहिए कि जब हम इस संसार से जाए तो इस धरा को और अधिक सुंदर रूप में छोड़कर जाए।