दोनों पक्षों पर दर्ज हुए थे मामले, 29 दिन बाद प्रशासन के आश्वासन पर ग्रामीणों ने स्थगित किया था धरना, नवंबर माह में गांव कांजनू के समीप करीब ढाई एकड़ भूमि पर निर्माण कार्य शुरू हुआ..
करीब चार महीने पहले गांव कांजनू में शुरू हुआ मीट प्रौसेसिंग फैक्ट्री का विरोध अब पूरी तरह से सुलझ गया है। डीसी पार्थ गुप्ता की मौजूदगी में दोनों पक्षों के बीच सहमति बन गई। जिसमें फैक्ट्री लगाने के लिए खरीदी गई भूमि को वापिस एक अन्य ग्रामीण को बेच दिया गया है। दोनों पक्षों के बीच लंबा चला विवाद समाप्त होने पर ग्रामीणों ने धर्म बचाओं व पर्यावरण बचाओं संघर्ष समिति की एक बैठक की और संघर्ष में साथ लेने वाले लोगों व सामाजिक, धार्मिक व राजनीतिक संगठनों का आभार जताया। इस दौरान राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के जिला संघचालक मानसिंह आर्य व आढ़ती एसोसिएशन के जिला प्रधान व नंबरदार शिवकुमार संधाला के विशेष सहयोग के लिए भी आभार जताया गया।
धर्म बचाओं-पर्यावरण बचाओं संघर्ष समिति के अध्यक्ष जयप्रकाश कांजनू ने बताया कि दो दिन पहले डीसी पार्थ गुप्ता की अगुवाई में दोनों पक्षों के लोगों की एक बैठक की गई थी। जिसमें एसडीएम सुशील कुमार, डीएसपी रजत गुलिया, ग्रामीणों की ओर से मानसिंह आर्य, शिवकुमार संधाला व फैक्ट्री संचालकों ने हिस्सा लिया था। जिसमें सहमति बनी कि फैक्ट्री संचालक इस भूमि को दोबारा बेच देगें जिसे कोई भी ग्रामीण खरीद सकता है। दोनों पक्षों में हुई बातचीत के बाद जमीन का एक रेट तय हो गया। जिसके अनुसार 𝟐𝟎 कनाल 𝟏𝟑 मरले इस जमीन को एक ग्रामीण को बेच दिया गया है और दोनों पक्ष इस पर सहमत हो गए। अब इस भूमि पर पहले की तरह खेती की जाएगी। लंबे चले इस संघर्ष में साथ लेने वाली मानसिंह आर्य, शिवकुमार संधाला के अलावा भारतीय किसान यूनियन, किसान संघ, बजरंग दल, हिंदू महासभा, आर्य समाज, सेवा भारती, स्वदेशी जागरण मंच, पंतजलि योग समिति, सामाजिक समरसता मंच के अलावा राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि भी बधाई के पात्र है। जिन्होंने हमारा इस संघर्ष में पूरा सहयोग किया और हमें इस संघर्ष में जीत मिली।
नवंबर माह में गांव कांजनू के समीप करीब ढाई एकड़ भूमि पर निर्माण कार्य शुरू हुआ। कुछ दिन बाद ग्रामीणों को यह जानकारी मिली कि इस भूमि पर मीट प्रौसेसिंग यूनिट लगाई जा रही है। जैसे ही यह बात गांव में पहुंची तो विरोध शुरू हो गया। ग्रामीणों का कहना था कि इस फैक्ट्री के यहां लगने से केवल लोगों की धार्मिक आस्था को ठेस पहुंचेगी बल्कि गांव में बिमारियां भी फैलेगी और पर्यावरण को भी नुकसान होगा। जिसको लेकर 𝟏𝟏 नवंबर को ग्रामीणों ने पहली बार विरोध किया और फैक्ट्री की जगह पर कार्य कर रहे मजदूरों को काम करने से रोक दिया। जिसके बाद फैक्ट्री संचालक ने उनके काम में बाधा पहुंचाने व मजदूरों को जान से मारने की धमकी देने के आरोप में कुछ ग्रामीणों पर मामला दर्ज करवाया। लेकिन ग्रामीण विरोध करते रहे।
𝟏𝟗 नवंबर को गांव में महापंचायत का आयोजन हुआ। जिसमें सैंकड़ों की संख्या में लोग जुटे। तब विरोध और अधिक तेज हो गया। लगातार फैक्ट्री स्थल के पास ही धरना चलता रहा और हर दिन कोई न कोई संगठन समर्थन देने पहुंचा। इस दौरान मामला न्यायालय में भी पहुंच गया। फैक्ट्री संचालक ने हाईकोर्ट में याचिका डालकर उनके कार्य को शुरू करवाने की मांग की। 𝟕 दिसंबर को पुलिस ने गांव के ही एक व्यक्ति की शिकायत पर फैक्ट्री संचालक व उसके परिवार के सदस्यों के अलावा ड्राईवर पर मारपीट करने, जान से मारने की धमकी देने व जातिसूचक शब्द कहने के आरोप में मामला दर्ज किया। 𝟏𝟔 दिसबंर को एक बार फिर से मामले में शहीद उधमसिंह कांबोज धर्मशाला में पंचायत रखी गई और जिसके बाद ग्रामीणों ने एसडीएम कार्यालय का घेराव किया।
तब तत्कालीन एसडीएम डा. इंद्रजीत सिंह व डीएसपी रजत गुलिया ने एक कमेटी का गठन कर एक माह में मामले में अपनी रिर्पोट देने का आश्वासन ग्रामीणों को दिया। 𝟐𝟗 दिन बाद 𝟏𝟖 दिसबंर को ग्रामीणों ने प्रशासन के आश्वासन पर धरना स्थगित कर दिया। 𝟏𝟖 जनवरी को एक बार फिर से तत्कालीन एसडीएम सुशील कुमार ने दोनों पक्षों के लोगों को कार्यालय बुलाया और दोनो से अलग अलग बातचीत की। तब भी ग्रामीणों ने किसी भी कीमत पर फैक्ट्री को गांव में न लगने देने की बात कही। जबकि फैक्ट्री संचालक ने नियमों के अनुसार फैक्ट्री लगाने का दावा किया था, लेकिन इस बार उन्होंनेे प्रशासन को दूसरा विकल्प दिया और उनकी जमीन के पैसे वापिस दिलवाने की बात कही। तभी मामले के सुलझने की आसार बन गए थे।
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