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𝐂𝐡𝐚𝐧𝐝𝐢𝐠𝐚𝐫𝐡 𝐍𝐞𝐰𝐬: गन्ना उत्पादक किसानों के सब्र की परीक्षा ले रही सरकार- सैलजा

गन्ने का दाम न बढ़ाना किसानों के साथ ज्यादती, 450 रुपये प्रति क्विंटल भाव घोषित हो, लगातार फसल खराब होने व कर्ज में डूबे किसान को डूबने से बचाए सरकार !



 
चंडीगढ़, डिजिटल डेक्स।। अखिल भारतीय कांग्रेस कमिटी की महासचिव एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री कुमारी सैलजा ने कहा कि मौजूदा सीजन में गन्ने का भाव न बढ़ाकर भाजपा-जजपा गठबंधन सरकार प्रदेश के किसानों के सब्र का इम्तिहान ले रही है। चीनी मिलों में किसान का सवा दो महीने से गन्ना जा रहा है, लेकिन भाव न बढ़ाकर गठबंधन सरकार उनके साथ ज्यादती करने पर तुली हुई है।


Senior Congress leader, Kumari Selja

सरकार द्वारा गन्ने का भाव बढ़ाने से इंकार करना साफ संकेत है कि किसान को बर्बाद करने के लिए उसकी फसल के सही दाम तक नहीं देने का षड्यंत्र रचा जा रहा है।

सैलजा ने कहा कि रस निकाले जाने के बाद गन्ने की खोई शुगर मिल से 400 रुपये प्रति क्विंटल बिक रही है, जबकि किसान को गन्ने का भाव पिछले साल वाला 362 रुपये प्रति क्विंटल ही मिल रहा है।

गन्ने की लागत और किसान की मेहनत को देखते हुए गन्ने का भाव इस बार कम से कम 450 रुपये प्रति क्विंटल किया जाना चाहिए था, लेकिन दाम न बढ़ाकर भाजपा-जजपा गठबंधन सरकार ने किसानों को बड़ा धोखा दिया है।

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कहा कि सवा दो महीने से भी अधिक समय से चीनी मिलें चल रही हैं और किसान इस साल बिना भाव तय हुए ही पहले दिन से ही अपना गन्ना मिलों को देता रहा। यह किसान ही है, जो बिना भाव तय हुए अपने उत्पाद को राष्ट्र हित में चीनी मिलों तक पहुंचाता रहा है।

सैलजा ने कहा कि इस साल मुद्रा स्फीति की दर में 7 प्रतिशत तक बढ़ाेतरी हुई है। इससे साफ है कि किसान को पिछले साल के मुकाबले गन्ना बेचने पर 7 प्रतिशत का सीधा नुकसान होगा।

पिछले साल का रेट 362 रुपये प्रति क्विंटल रुपये था, जिसमें महंगाई को देखते हुए निश्चित तौर पर बढ़ोतरी की जानी चाहिए थी। गन्ने के दाम में बढ़ोतरी न करना गठबंधन सरकार के ईशारे पर किसानों के साथ मिलों द्वारा षड्यंत्र के तहत की गई लूट का सबसे बड़ा उदाहरण है।

कहा कि इस सीजन में मिल शुरू होते ही कोई भी भाव तय करने की बजाए भाजपा-जजपा गठबंधन सरकार ने गन्ने की फसल पर प्रति क्विंटल 7 प्रतिशत वजन कटौती का आदेश तुरंत लागू कर दिया था, ताकि चीनी मिलों को फायदा पहुंचाया जा सके। 

इसके विपरीत पड़ोसी राज्य पंजाब में यह कटौती महज 3 प्रतिशत ही है। इससे पता चलता है कि प्रदेश सरकार पूरी तरह से किसान विरोधी है।


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