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Chandigarh- खोये हुओं का सहारा बनी हरियाणा पुलिस, सिर्फ 8 महीने में ढूंढे 378 बच्चे


𝐀𝐧𝐭𝐢 𝐇𝐮𝐦𝐚𝐧 𝐓𝐫𝐚𝐟𝐟𝐢𝐜𝐤𝐢𝐧𝐠 𝐔𝐧𝐢𝐭 (𝐀𝐇𝐓𝐔) 𝐨𝐟 𝐇𝐚𝐫𝐲𝐚𝐧𝐚 𝐏𝐨𝐥𝐢𝐜𝐞 𝐡𝐚𝐬 𝐚𝐜𝐡𝐢𝐞𝐯𝐞𝐝 𝐬𝐮𝐜𝐜𝐞𝐬𝐬 𝐢𝐧 𝐛𝐫𝐢𝐧𝐠𝐢𝐧𝐠 𝐛𝐚𝐜𝐤 𝐭𝐡𝐞 𝐥𝐨𝐬𝐭 𝐬𝐦𝐢𝐥𝐞𝐬 𝐚𝐦𝐨𝐧𝐠𝐬𝐭 𝐡𝐮𝐧𝐝𝐫𝐞𝐝𝐬 𝐨𝐟 𝐟𝐚𝐦𝐢𝐥𝐢𝐞𝐬 𝐛𝐲 𝐭𝐫𝐚𝐜𝐢𝐧𝐠 𝐚𝐧𝐝 𝐫𝐞𝐮𝐧𝐢𝐭𝐢𝐧𝐠 𝟑𝟕𝟖 𝐦𝐢𝐬𝐬𝐢𝐧𝐠 𝐜𝐡𝐢𝐥𝐝𝐫𝐞𝐧 𝐚𝐧𝐝 𝟒𝟖𝟐 𝐚𝐝𝐮𝐥𝐭𝐬 𝐟𝐫𝐨𝐦 𝐉𝐚𝐧𝐮𝐚𝐫𝐲 𝐭𝐨 𝐀𝐮𝐠𝐮𝐬𝐭 𝟐𝟎𝟐𝟐. 𝐓𝐡𝐞 𝐭𝐫𝐚𝐜𝐞𝐝 𝐜𝐡𝐢𝐥𝐝𝐫𝐞𝐧 𝐢𝐧𝐜𝐥𝐮𝐝𝐞 𝟐𝟎𝟓 𝐛𝐨𝐲𝐬 𝐚𝐧𝐝 𝟏𝟕𝟑 𝐠𝐢𝐫𝐥𝐬 𝐚𝐧𝐝 𝐚𝐝𝐮𝐥𝐭𝐬 𝐢𝐧𝐜𝐥𝐮𝐝𝐞 𝟐𝟐𝟔 𝐦𝐞𝐧 𝐚𝐧𝐝 𝟐𝟓𝟔 𝐰𝐨𝐦𝐞𝐧. 𝐒𝐨𝐦𝐞 𝐨𝐟 𝐭𝐡𝐞𝐦 𝐡𝐚𝐯𝐞 𝐛𝐞𝐞𝐧 𝐦𝐢𝐬𝐬𝐢𝐧𝐠 𝐟𝐨𝐫 𝐚 𝐥𝐨𝐧𝐠 𝐭𝐢𝐦𝐞. 𝐒𝐡𝐚𝐫𝐢𝐧𝐠 𝐭𝐡𝐞 𝐢𝐧𝐟𝐨𝐫𝐦𝐚𝐭𝐢𝐨𝐧 𝐡𝐞𝐫𝐞 𝐭𝐨𝐝𝐚𝐲, 𝐀𝐝𝐝𝐢𝐭𝐢𝐨𝐧𝐚𝐥 𝐃𝐢𝐫𝐞𝐜𝐭𝐨𝐫 𝐆𝐞𝐧𝐞𝐫𝐚𝐥 𝐨𝐟 𝐏𝐨𝐥𝐢𝐜𝐞, 𝐂𝐫𝐢𝐦𝐞, 𝐎.𝐏. 𝐒𝐢𝐧𝐠𝐡 𝐢𝐧𝐟𝐨𝐫𝐦𝐞𝐝 𝐭𝐡𝐚𝐭 𝐏𝐨𝐥𝐢𝐜𝐞 𝐡𝐚𝐬 𝐚𝐥𝐬𝐨 𝐫𝐞𝐬𝐜𝐮𝐞𝐝 𝟏𝟕𝟔𝟎 𝐜𝐡𝐢𝐥𝐝𝐫𝐞𝐧 𝐟𝐫𝐨𝐦 𝐜𝐡𝐢𝐥𝐝 𝐥𝐚𝐛𝐨𝐮𝐫 𝐚𝐧𝐝 𝐛𝐞𝐠𝐠𝐢𝐧𝐠 𝐰𝐡𝐨 𝐰𝐞𝐫𝐞 𝐟𝐨𝐮𝐧𝐝 𝐝𝐨𝐢𝐧𝐠 𝐨𝐝𝐝 𝐣𝐨𝐛𝐬 𝐟𝐨𝐫 𝐭𝐡𝐞𝐢𝐫 𝐥𝐢𝐯𝐞𝐥𝐢𝐡𝐨𝐨𝐝.



चंडीगढ़, डिजिटल डेक्स।। नया शहर, नयी भाषा, आप अनजान और ना कोई अपना। ऐसे समय में अक्सर इंसान घबरा जाता है। अनजान शहर में किस पर भरोसा करें, इस सवाल का जवाब स्थिति को और भयावह बना देता है। ऐसे वक्त में जनता सिर्फ पुलिस पर ही उन्हें सुरक्षित घर पहुँचाने का भरोसा करती है। और इसी कसौटी पर खरी उतर रही है हरियाणा पुलिस की एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट्स। 

एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट्स न सिर्फ भूले भटकों को उनके परिवार से मिलवा रही है बल्कि भीख व बालमजदूरी में फंसे बच्चों को भी रेस्क्यू करने का कार्य करती है। इस वर्ष, एएचटीयू सिर्फ 8 महीनों में करीबन 378 खोये हुए बच्चों को उनके परिवार से मिलवा चुकी है। कई बच्चे इनमें दिव्यांग थे, जो ना बोल सकते थे और ना सुन सकते थे। इसके अलावा, कई मामलों में, बच्चा ऐसे राज्यों से होता है जहाँ भाषा अलग होने के कारण काउंसलिंग करना मुश्किल हो जाता है।

स्टेट क्राइम ब्रांच चीफ ओ पी सिंह, आईपीएस, अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक, राज्य अपराध शाखा हरियाणा ने बताया की वर्तमान में स्टेट क्राइम ब्रांच के अधीन 22 मानव तस्करी रोधी इकाई (एएचटीयु) कार्य कर रही है। सभी यूनिटों में निर्देश दिए गए है की जैसे ही कोई बच्चा, महिला, पुरुष मिलता है तो सबसे पहले उसका उसे सुरक्षित होने का एहसास दिलवाना है। 

सभी पुलिसकर्मी उनसे एक परिवार की तरह मिलते है। कोशिश की जाती है की दोनों के बीच एक अपनेपन का रिश्ता स्थापित हो सके ताकि खोये हुए इंसान का भरोसा बने। इससे एएचटीयु को उनके परिवार के बारे में क्लू ढूंढने में आसानी हो जाती है।

कभी भाषा, तो कभी दिव्यांग होना आड़े आ जाता है, लेकिन नहीं मानते हार, सिर्फ एक शब्द से ढूंढ निकालते है परिवार।

पुलिस प्रवक्ता ने बताया की जैसे ही किसी खोये हुए बच्चे, महिला या पुरुष को रेस्क्यू किया जाता है तब सबसे पहले उसकी काउंसलिंग चाइल्ड वेलफेयर कमेटी द्वारा की जाती है। अलग अलग केस में एएचटीयु इंचार्ज को कई-कई घण्टे बैठना पड़ता है। 

कई बार क्लू में सिर्फ गाँव का नाम, स्थान विशेष, तालाब या मार्केट का नाम होता है। ऐसी स्थिति में घर का पता लगाना काफी मुश्किल हो जाता है लेकिन टीम हार नहीं मानती और उसी क्लू के आधार पर घर-परिवार ढूंढ कर ही चैन लेती है।

इस वर्ष ढूंढे 378 बच्चे, 482 व्यस्क, बचाये 1114 बाल-मजदूर

ओ पी सिंह अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक ने बताया की इस वर्ष अगस्त तक 378 नाबालिग जिनमें 205 लड़के व 173 लड़कियां व 482 वयस्क जिनमें 226 पुरुष व 256 महिलाएं को खोज कर परिजनों से मिलवाया गया है। गुम हो चुके लोगों के अलावा एएचटीयु बाल मजदूरी और भीख मांगने वाले बच्चों को भी बचाने का काम करती है। 

 इस वर्ष, स्टेट क्राइम ब्रांच की एएचटीयु द्वारा करीबन 1114 बाल मजदूरों और 646 बाल भिखारियों को रेस्क्यू किया गया है। यदि आपको कोई बच्चा बालमजदूरी करता दिखे या भीख मांगते दिखे, तो नजरअंदाज ना करें, पुलिस को तुरंत जानकारी दें।

कोई था 18 साल से लापता तो कोई 15 साल से भूल गया था घर की राह, बच्चों से करनी पड़ती है दोस्ती, नहीं बताते की हम पुलिस से है। 

अक्सर कई केस में देखा जाता है की जब किसी को गुम हुए कई साल हो जाएँ तो आस छोड़ दी जाती है की उनका परिवार ढूंढा नहीं जा सकेगा लेकिन स्टेट क्राइम ब्रांच ऐसा नहीं सोचती है। पुलिस प्रवक्ता ने जानकारी देते हुए बताया की एक केस में एएसआई राजेश कुमार, एएचटीयु , पंचकूला को पता चला की एक दिव्यांग करनाल नारी निकेतन में रह रही है और सिर्फ एक शब्द ‘दलदल‘ बोलती है। 

 इसी आधार पर आगे कार्रवाई करते हुए एएसआई राजेश कुमार ने बिहार के छपरा गाँव के पास दलदली बाजार ढूंढ लिया। वहां छपरा गाँव के मुखिया से बात कर उस दिव्यांग लड़की को 15 साल बाद परिवार से मिलवाया। वहीं एक अन्य केस में केरल में उत्तर प्रदेश से लापता लड़की को खोज निकाला। 

 इसके अतिरिक्त एक अन्य केस में 18 साल बाद गुमशुदा मनोज, जो की मानसिक दिव्यांग है, उसे उसके परिवार से एएसआई जगजीत सिंह, एएचटीयु यमुनानगर ने उत्तर प्रदेश में मिलवाया। मनोज 2004 से गुम था, ऐसे केस में लम्बा समय बीत जाने के कारण दिव्यांग अक्सर अपने परिवार से जुड़ी बातें भूल जाते है। लेकिन एएसआई जगजीत सिंह ने हार नहीं मानी और उसके भाई को ढूंढ कर, एक लंबे इंतजार का पटाक्षेप किया।

प्यार ही है कुंजी इस सफलता की, परिवार की दुआएं और खुशियों में हमारी खुशी: ओ पी सिंह , आईपीएस

अक्सर समाज में पुलिस के प्रति एक गलतफहमी है की पुलिस वाले हमसे प्यार से बात नहीं करते है और ना ही हमारी बात सुनते है। लेकिन ऐसा नहीं है। पुलिस 24 घंटे नौकरी करती है और इसी कोशिश में रहती है कि किसी के साथ अन्याय ना हो। हमारे सभी पुलिसकर्मी दोस्तों की तरह इन भूले भटकों से मिलते है। 

अधिकतर केस में लापता व्यक्ति को तो बताते भी नहीं है की हम पुलिस से है। काउंसलिंग में गुम हो चुके, भयभीत बच्चों और लोगों को एक दोस्त की जरूरत होती है और हमारी सभी यूनिट के पुलिसकर्मी दोस्त बनकर मिलते है। उनके साथ समय बिताते है ताकि वो परिवार से जुडी बातें याद कर सकें। उसी आधार पर मिलने वाले क्लू पर पुलिस काम करती है और बिछुड़ों को उनके परिवार से मिलवाती है। परिवार से मिलने वाली दुआओं में ही हमें हमारी जीत नजर आती है।

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