नेत्रदान के लिए उम्र की कोई सीमा नहीं है
रादौर, डिजिटल डेक्स।। गांव सिलीकलां निवासी डेरा प्रेमी शीला देवी इंसा (68) की मृत्यु उपरांत परिजनों ने उनकी आंखे दान की। उनकी आंखों को माधव नेत्र बैंक करनाल को सौंपा गया। अब उनकी यह आंखे किसी की अंधेरी जिंदगी में रोशनी करने का कार्य करेगी। बता दे कि इसी गांव से पहले भी 3 डेरा प्रेमियों के मरणोपरांत उनके परिजनों ने उनकी आंखे दान की है।
शाह सतनाम ग्रीन एस वेल्फेयर के सेवादार जसवंत इंसा व 15 मेंबर एवन इंसा ने बताया कि शीला देवी इंसा करीब 30 वर्षों से डेरा सच्चा सौदा की सेवादार थी। वह हमेशा ही मानवता भलाई कार्यो में अग्रणी रहती थी। शिला देवी इंसा के दो बेटे व एक बेटी हैं। उनका पूरा परिवार डेरे की सेवा कर रहा है।
मनुष्य के जीवन में आंखों का विशेष महत्व है, यह शरीर का एक महत्वपूर्ण अंग है, इसी से हम दुनिया के हर रंग, अपने आसपास होने वाली चीजें, हर रोशनी, एक-दूसरे की पहचान आदि करते हैं, अगर आंखें न हों तो जिंदगी काफी मुश्किल हो जाती है, बिना आंख वालों को काफी हद तक दूसरों पर भी निर्भर रहना पड़ता है, भारत में करीब 4.6 मिलियन लोग कॉर्नियल ब्लाइंड्नेस से पीड़ित हैं, ऐसे लोगों की जिंदगी का अंधेरा नेत्रदान से ही खत्म हो सकता है लेकिन, भारत में नेत्रदान को लेकर लोगों में जागरूकता का अभाव है, जिसकी वजह से बहुत कम लोग ही नेत्रदान के लिए आगे आ रहे हैं !
डेरा प्रमुख गुरमीत राम रहीम की शिक्षाओं व मानवता भलाई के कार्यो से प्रेरणा पाकर ही शीला देवी के परिजनों ने उनकी आंखे दान करने का निर्णय लिया। उनका यह कार्य अन्य लोगों के लिए भी प्रेरणा बनेगा। क्योंकि मरने के बाद शरीर राख हो जाता है। अगर इस प्रकार के मानवता भलाई के कार्य किए जाए तो मरने के बाद भी हम इस प्रकार की सेवा कर सकते है।
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